फूल, पत्ती , पहाड, झरने और प्यार कि बाते अपनी कवीतामें करनेवाली चंद्रहार ( काश्मीर ) गांव की हब्बा खातून (झुनी) काश्मीर की कवी परम्परामें एक और रत्न है । जिस जमी पे माता सरस्वती का निवास है । जहाँ लल्लेश्वरीने भगवान शिवजी कि भक्तीमें संसार को त्यागकर पर्वतको ही अपना घर बनाया ।
वो ही काश्मीर के कला और साहित्य के भूमीने हब्बा खातून को जन्म दिया । अपने बिछडे हुए प्यार ( पती युसूफ शाह चाक ) कि यादोंमें उसने अपनी कविताये सारी वादीमें घुमते हुए निर्माण की । एक लल्लेश्वरी जिसका भगवान शिव से प्रेम था तो दुसरी झुनी अपने पती ( काश्मीर का राजा युसूफ के ) प्रेम मे थी । उत्कट कला का अविष्कार प्रेम से हि होता है ।
चाहे वो अध्यात्मिक हो या व्यक्तिगत ।समर्पण कि भावनासे ओतप्रोत भरी भारत कि ये नायिकायें काश्मीर की असली पेहचान है । आज भी वादीमें उनकी कविताये फुल और पेडोके रूप में खिलती है । विश्व के सर्वोच्च सांस्कृतिक धरोहर का आश्रयस्थान है काश्मीर ।
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