शिव जितने इस धरती में प्रिय है उतनी ही शक्ती भी इस भारत खंड में प्रिय है । और अगर भारतीय संस्कृती में आप रुची रखते हो तो शक्ती पीठ के दर्शन के बगैर आपकी ये यात्रा अधुरी है । अध्यात्मके आस्तिक और नास्तिक दर्शनके इस धरा पर आप जब बंगाल कि तरफ मुडते है तो माँ महाकाली और माँ कामाख्या का बोलबाला सुनाई देता है ।
भारत के एक सुदूर कोनेमें स्थित इन सुंदर राज्यमें या मंदिर है । लेकिन यहां देश विदेशसे लोग बंदी आस्थासे आते है । इंटरनेट पार आपको कामाख्या मंदिर का महिमा आपको व्हिडीओ और ब्लॉग के मध्यमसे जरूर मिलेगा । हम यहा इस मंचके मध्यमसे हमारा अनुभव साझा करना चाहते है ।
व्यक्तिगत कारण ( मन्नत पुरी होणे के कारण ) हम माता के दर्शनके लिये पुणे से गुवाहाटी गये । भारत में साधारणतः कोई भी मंदिर नगरा, वेसरा या गोपुरम ( द्रविड ) शैली में बनते है । शिल्प भी एक विशिष्ट शैलीमें होते है । यहा सब कुछ अलग ही है । अलग अलग घुमट और उनका समुदाय बनकर ये मंदिर खडा है । कुछ शतको पेहले इसे तोडा गया था लेकिन बिहार के राजा ने मंदिर का वापीस निर्माण किया । शायद वो एक कारण हो सकता है ।
शिल्प अगर देखेंगे तो असम से लेकर त्रिपुरा और कंबोडिया तक कें मंदिरो मे एक नाता पक्का दिखाई देता है । एक सुरीलापन, लय शिल्प के शरीर, आखों और भावों मे प्रतीत होती है । लाल रंग ( गुलाल ) का प्रयोग हर शिल्प पर भक्तो द्वारा किया है । किसी मान्यता हो या पूजा विधी लेकिन लगभग हर शिल्प पर दिखाई देता है । वो देख के मन में एक डर सा पैदा हो जाता है ।
मंदिर काफी स्वच्छ रखा हुआ है । सालभर यहा बहोत भीड होती है । पास लेनेके बाद भी हमें दर्शनके लिये २ घंटे लगे । एक बार ऐसा लगा कि बाहर से हि दर्शन करते है । लेकिन जब मंदिर के गर्भ गृहमें प्रवेश किया सारी ऊर्जा अचानकसे बदल गयी । अंधेरा, थोडीसी गर्मी, मंत्रोच्चार और मंदिरके शक्तिशाली शिल्प देखकर मन स्तब्ध हो गया । मुझे अचानक तुळजापूर के मा भवानी के मंदिर कि याद ताजा हो गयी ।
कितने भी घने वनो मे जाऊ या किसी भी शिव मंदिर मे जाऊ मनमें मैं अपने घरके आंगण में जा रहा हू ऐसे लगता है । लेकिन माँ के मंदिरमे मैं एक अनंत और काल विरहित गर्भाशय के अंदर हु इस तरह कि भावना होती है । शायद वो गुरुत्वाकर्षण के कारण होता होगा । लेकिन वो जगह कि शक्ती निश्चितही अलग है ।
जो लोग हमारे भारतीय अध्यात्म और उपासना पद्धतीमें खमिया ढुंढते है वो द्वेषके कारण धर्म और काल अनुसार मनुष्य कि अवनती को एक ही समजते है । पुरे विशवमे ये एक मंदिर है जहाँ माता के योनी कि पूजा कि जाती है । जहाँ स्त्रिया विशेष रुप से पूजनीय मानी जाती है । लोगोंके मनमे मासिक धर्मके प्रति यहा कोई भी दूषित विचार नही होते है । इतिहास कालमें बंगालसे लेकरं उपरी राज्योन्को स्त्री राज्य केहनेका कारण यहा समाज मे स्त्रीका दर्जा सामान या पुरुषो से उपर था । जो जो आज भी हमें हर जगह प्रतीत होता है ।
कौलाचार जो तंत्र मार्ग कि महत्वपूर्ण और वाममार्ग कि प्रमुख शाखा है उसका गढ कामरूप ( नीलांचाल पर्वत ) यांनी कामाख्या मंदिर परिसर को मानते है । वो निश्चितही योग्य है ।ब्रह्मपुत्र को निहारते हुए नीलांचल की ये पहाडी ने हमें एक अनुभव दिया जो जीवन भर के लिये हम साथ लेकर चलेंगे । आप किसी धर्म को माने या ना माने हमारा सृजन स्त्री तत्वके बिना संभव नही है ।
शिव और शक्ती, पुरुष और प्रकृती या चाहे यीन और यांग कहो जीवन कि शक्यता की एक बुंद ( जिसे आप बिंदू कहो या प्रणव ) शिव तत्व शक्ती तत्व को प्रदान करते है । और उसमे से चैतन्य भरकर पुरे विश्व का सृजन माँ अपनी कोख से करती है । वो हि चीज पुरुष और स्त्री इन दोनोके बीच होती है । इसीलिये माँ का स्थान हमेशा श्रेष्ठ होता है ।
मा का गर्भ और उसका मासिक धर्म जो धरती मा और चंद्रमा के साथ साथ जुडा हुवा है ।इस निसर्गकें अतूट बंधनमें बंधी वो शक्ती हमें विश्व का अनुभव कराती है । तो उस माँ के मासिक धर्म का भी अंबुवाची उत्सवके रूपमें बडा उत्सव भी यहा मनया जात है ।
हमारी इच्छा थी कि हमारी कन्या स्त्री शक्ती कि आनंदमयी पूजा देखे और माँ का आशीर्वाद प्राप्त हो । ताकि अगर कोई आगे चलकर उसे कोई स्त्रीवाद के बारे में बतायें तो वो भी उसे भारतके स्त्रियों की गौरव भूमी और आत्मविश्वास भरी स्त्रियोंके बारे में बतायें । तंत्र मार्ग, मत्स्येन्द्र नाथ ( नाथ संप्रदाय ) , दश महाविद्या, कौल मार्ग, शिव शक्ती ( सती माता) के अनोखे प्रेम कहाणी लोगोंको सुनाये । पश्चिमी विचारोंका सामना तर्क और श्रध्दासे करे ।जय मा कामाख्या ।
आसाम , अरुणाचल और मेघालय के पुरे प्रवास में हमें वॉन्डर राईड्स नॉर्थ ईस्ट के आभारी है ।
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